जब हम मॉनसून, वर्षा‑संबंधी मौसमी हवा का वह चक्र है जो दक्षिण एशिया में गर्मी के बाद आता है. इसे कभी‑कभी गरमी‑बारिश का मौसम भी कहा जाता है। इस मौसमी प्रणाली के साथ जुड़े कुछ महत्वपूर्ण घटक भी हैं: वर्षा, बारिश की मात्रा और वितरण, बाढ़, अत्यधिक जलसंचय से होने वाला जल‑प्रवाह, जलवायु परिवर्तन, मानव‑प्रेरित वैश्विक ताप बढ़ोतरी और कृषि, फ़सल उत्पादन पर निर्भर आर्थिक क्षेत्र। इन पांच इकाइयों के बीच का संबंध समझना ही मोनसून के असर को सही‑से‑गिनने की कुंजी है।
भारत में मोनसून का सफ़र जून‑सितंबर के बीच शुरू होता है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, इस अवधि में देश के लगभग 70 % क्षेत्र में औसत वर्षा गिरती है। लेकिन मोनसून सिर्फ बारिश नहीं, यह एक जटिल वायुमंडलीय प्रक्रिया है जो समुद्र‑तट के ताप अंतर, हल्की हवा‑दिशा‑परिवर्तन और घनत्व भिन्नता पर निर्भर करती है। इस कारण ही उत्तर भारत में हल्की बूदाबूँदी और दक्षिण पश्चिमी तट पर गीज़र‑बारिश देखी जाती है। यही भिन्नताएँ जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को भी स्पष्ट करती हैं, क्योंकि तापमान बढ़ने से मॉनसून की शुरुआत में देरी और चरम वर्षा में वृद्धि हो रही है।
जब मोनसून वर्षा लाता है, तो किसान उसके आधार पर बीज बोते हैं, बुवाई के समय का चयन करते हैं और जलसिंचाई की योजना बनाते हैं। धान, गन्ना और मसूर जैसी फ़सलें विशेष रूप से मानसून‑निर्भर होती हैं। अगर वर्षा समय से पहले या बहुत देर से आती है, तो फ़सल की बुवाई चक्रीय रूप से बिगड़ सकती है। इसी वजह से कई राज्य सरकारें अब सिंचाई‑कोष, डैमर निर्माण और जल‑संकट प्रबंधन के लिए विशेष योजनाओं को लागू कर रही हैं, ताकि कृषि‑क्षेत्र में मोनसून के उतार‑चढ़ाव को संतुलित किया जा सके।
बिना नियंत्रण के बहुत अधिक बाढ़ तब उत्पन्न होती है जब जल‑स्रोतों का जलस्तर अचानक बढ़ जाता है। कुम्भी, बंधवन, नहर और नदी‑तालाब से निकलते जल की अधिकता, नीचे के इलाकों में जल‑संकट को जन्म देती है। पिछले कुछ सालों में पर्यावरणीय विघटन, शहरीकरण तथा वनों की कटाई ने बाढ़‑जोखिम को और बढ़ा दिया है। इस समस्या से निपटने के लिए IMD कभी‑कभी ग्रेगर प्रेडिक्शन मॉडल, रिमोट‑सेंसिंग और हाई‑रिज़ॉल्यूशन रेनफ़ॉल मैप का उपयोग करता है, जिससे स्थानीय प्रशासन को समय पर चेतावनी दी जा सके।
वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन ने मॉनसून के पैटर्न को बदल दिया है। समुद्री सतह का तापमान 0.2 °C से बढ़ रहा है, जिससे हवा‑संकुचन में बदलाव आया है। परिणामस्वरूप, कुछ क्षेत्रों में भारी बारिश के साथ‑साथ अन्य क्षेत्रों में अति‑सूखा देखी गई प्रवृत्ति है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अगले दो दशकों में भारतीय उपमहाद्वीप में औसत मॉनसून रेनफ़ॉल में 5‑10 % की वृद्धि या कमी संभव है, जो सीधे ही कृषि‑उत्पादन, जल‑संग्रह और सामाजिक‑आर्थिक स्थितियों पर असर डालेगी।
फसल‑आधारित लोगों की ज़िन्दगी के लिए कृषि मोनसून की धड़कन है। जब वर्षा संतुलित होती है, तो धान के खेत में पानी का स्तर बनता है, जिससे फसल ठीक‑ठाक बढ़ती है। परन्तु अत्यधिक बाढ़ या देर‑से‑आने वाली बरसात, दोनों ही फ़सल को नुकसान पहुँचाते हैं। इसलिए, आधुनिक कृषि में जल‑संकट‑प्रबंधन, ड्रिप इरिगेशन, और क्लाइमेट‑रेज़िलिएंट फ़सल किस्में जैसे उपाय अपनाए जा रहे हैं। इन उपायों से किसान को अनिश्चित मोनसून के ऊपर भी स्थिर आय मिल सकती है।
अब आप इस पेज पर नीचे दी गई पोस्टों के माध्यम से मोनसून से जुड़ी ताज़ा खबरें, विश्लेषण और विशेषज्ञ राय पढ़ पाएँगे। चाहे वह IMD की चेतावनी हो, बाढ़‑प्रीवेंटिव उपाय, या नई फ़सल तकनीकें—इन्हें पढ़कर आप अपने आसपास के मोनसून‑परिवर्तनों को बेहतर समझ पाएँगे। आगे देखें, और जानें कि कैसे मौसम, जलवायु और कृषि एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।
जम्मू-कश्मीर और उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में लू का प्रकोप जारी है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में तापमान 43 से 46 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है। मॉनसून की उत्तरी सीमा कई दिन से जस की तस है, जिससे आम जनजीवन बेहाल है।