When working with ग्रे मार्केट प्रीमियम, अधिकृत नहीं होने वाले विदेशी माल की कीमत में कानूनी बाजार से अतिरिक्त मूल्य जोड़ना. Also known as ग्रे मार्केट प्राइस प्रीमियम, it reflects कस्टम ड्यूटी और बाजार जोखिम का मिश्रण.
ग्रे मार्केट प्रीमियम का मुख्य कारण कस्टम ड्यूटी की उच्च दरें हैं, जिससे आयातकों को अतिरिक्त लागत झेलनी पड़ती है। साथ ही, आपूर्ति‑क्षमता की कमी और सीमित प्रमाणीकरण प्रक्रियाएँ कीमत को ऊपर उठाती हैं। सरल शब्दों में, जब आधिकारिक चैनल से सामान उपलब्ध नहीं होते, तो उपभोक्ता वैकल्पिक रास्ते अपनाते हैं और वह प्रीमियम वहन करता है। यह तर्क कई उद्योगों में लागू होता है – स्मार्टफ़ोन, गैजेट्स, लक्ज़री फ़ैशन और यहाँ तक कि मेडिकल सप्लाई।
ग्रे मार्केट प्रीमियम के तीन प्रमुख घटक हैं: कस्टम ड्यूटी, बाजार जोखिम और ग्रे मार्केट की संरचना। पहला घटक सीधे सरकारी नीतियों से जुड़ा है; अगर ड्यूटी बढ़े तो प्रीमियम भी बढ़ेगा। दूसरा घटक अनिश्चितता को दर्शाता है – जैसे दुर्गम आपूर्ति शृंखला, बदलते विनिमय दर, या कनेक्टिविटी की कमी। तीसरा घटक सम्पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र है, जहाँ अनधिकृत आयात, थर्ड‑पार्टी डीलर और गैर‑मान्य प्रमाणन नेटवर्क मिलकर कीमत को बढ़ाते हैं। इन तीनों के बीच का संबंध एक सटीक त्रिकोण बनाता है, जिससे प्रीमियम का स्तर जल्दी बदल सकता है।
उदाहरण के लिए, 2025 में भारत में इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की कस्टम ड्यूटी में अचानक 5% की बढ़ोतरी हुई। वही समय था जब अंतरराष्ट्रीय शिपिंग में देरी बढ़ी, जिससे बाजार जोखिम भी तेज़ी से बढ़ा। परिणामस्वरूप, कई ऑनलाइन रिटेलर अपने मूल्य में अतिरिक्त ₹2,000‑₹3,000 जोड़ कर ग्रे मार्केट प्रीमियम को कवर करने लगे। यह केस दर्शाता है कि नीति, आपूर्ति‑असुरक्षा और उपभोक्ता व्यवहार आपस में घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं।
ग्रे मार्केट प्रीमियम को समझने के लिए एक और जरूरी पहलू है उपभोक्ता जागरूकता। जब खरीदार पता लगाते हैं कि वही प्रोडक्ट आधिकारिक चैनल से कम कीमत में उपलब्ध है, तो वे अक्सर वैध विकल्प चुनते हैं और प्रीमियम घट जाता है। इसलिए कंपनियों को स्पष्ट प्राइसिंग, भरोसेमंद वारंटी और तेज़ डिलीवरी जैसी सुविधाएँ देनी चाहिए, जिससे ग्रे मार्केट की ओर प्रवाह कम हो।
स्पष्टता की बात करें तो, ग्रे मार्केट प्रीमियम को मापने के लिए दो प्रमुख मीट्रिक काम आते हैं: “प्रीमियम प्रतिशत” और “बाजार हिस्सेदारी में बदलाव”। प्रीमिक प्रतिशत बताता है कि ग्रे मार्केट कीमत आधिकारिक कीमत से कितनी अधिक है, जबकि बाजार हिस्सेदारी में बदलाव दर्शाता है कि वैध और गैर‑वैध चैनलों में कितने प्रतिशत ग्राहक शिफ्ट हो रहे हैं। इन आंकड़ों को नियमित रूप से ट्रैक करने से नीतिनिर्माताओं और व्यापारियों को बेहतर निर्णय लेने में मदद मिलती है।
एक और उपयोगी टिप यह है कि कंपनियां अपने आपूर्तिकर्ता नेटवर्क को विविध बनाकर ग्रे मार्केट प्रीमियम को नियंत्रित कर सकती हैं। यदि केवल एक ही पोर्ट या कस्टम हब पर निर्भरता है, तो किसी भी बाधा से प्रीमियम में अचानक उछाल आ सकता है। बहु‑कनेक्शन, स्थानीय साझेदार और वैकल्पिक लॉजिस्टिक विकल्प अपनाने से जोखिम घटता है और लागत स्थिर रहती है।
व्यवसायिक दृष्टिकोण से, ग्रे मार्केट प्रीमियम का प्रबंधन एक रणनीतिक कार्य बन जाता है। निवेशकों को यह समझना चाहिए कि उच्च प्रीमियम वाले उत्पादों में मार्जिन संभवतः बेहतर हो सकता है, पर साथ ही निचली मार्जिन वाले सेक्टर में जोखिम भी बढ़ता है। इसलिए पोर्टफोलियो में विविधता और जोखिम‑आधारित मूल्यांकन आवश्यक है।
नीचे आप देखेंगे कि विभिन्न वित्तीय और उपभोक्ता खबरें—जैसे आईपीओ, बैंक अवकाश, क्रिकेट अवकाश और सरकारी नीतियों में बदलाव—कैसे सीधे या परोक्ष रूप से ग्रे मार्केट प्रीमियम को प्रभावित करती हैं। यह संग्रह आपको एक व्यापक दृश्य देगा, जिससे आप अपनी खरीद‑फरोक़्त या निवेश रणनीति को बेहतर बना सकेंगे।
8 अक्टूबर 2025 को LG इलेक्ट्रॉनिक्स आईपीओ का GMP ₹303 (26.58%) रहा, जबकि टाटा कैपिटल का केवल ₹7 (2.15%) गिर गया, जिससे बाजार में दोहरी भावना उत्पन्न हुई.