India Women vs Australia Women: पहले ODI में ऑस्ट्रेलिया की 8 विकेट की धमाकेदार जीत, सीरीज़ में 1-0 बढ़त

India Women vs Australia Women: पहले ODI में ऑस्ट्रेलिया की 8 विकेट की धमाकेदार जीत, सीरीज़ में 1-0 बढ़त सित॰, 20 2025

India Women vs Australia Women का पहला ODI एकतरफा निकला—लेकिन कहानी में परतें हैं। New Chandigarh की नई पिच पर भारत ने 281/7 का स्कोर खड़ा किया, शुरुआत शानदार रही, पर आखिर में रफ्तार खो बैठी। जवाब में ऑस्ट्रेलिया ने बिना घबराहट, ठंडे दिमाग से रन बनाए और 35 गेंदें शेष रहते 8 विकेट से जीत दर्ज कर ली। यह सिर्फ एक जीत नहीं थी, यह मेहमान टीम की योजना, संयम और प्रक्रिया पर भरोसे की झलक थी।

मैच का हाल: भारत की शानदार ओपनिंग, ऑस्ट्रेलिया का बेफिक्र पीछा

भारतीय ओपनरों ने वही किया जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी—सुरक्षित शुरुआत। स्मृति मंधाना, जिन्होंने अपने करियर में चौथी बार ODI बल्लेबाजी रैंकिंग में नंबर-1 पोजिशन वापस पाई, ने 63 गेंदों में 58 रन बनाए और बाएँ हाथ की अपनी क्लासिक ड्राइव्स से पावरप्ले में नियंत्रण रखा। दूसरी ओर, प्रतीका रावल ने 96 गेंदों पर 64 रन बनाकर धैर्य दिखाया। दोनों ने 106 गेंदों में 100 रनों की साझेदारी रची, जिसने भारत को एक ठोस प्लेटफॉर्म दिया।

टॉप-ऑर्डर की लय को हर्लीन देओल ने आगे बढ़ाया। 57 गेंदों पर 54 की पारी में उन्होंने गैप्स चुने, स्ट्राइक रोटेट की और जैसे ही स्पिन आई, पैर बाहर निकालकर शॉट्स लगाए। लेकिन यहीं मैच में पहला मोड़ आया—मध्यम ओवरों में रन तो चलते रहे, पर बाउंड्री रेट गिरा। स्मृति का रन-आउट (फीबी लिचफील्ड की सटीक थ्रो) और हर्लीन का स्टंपिंग—दोनों ने ताल बिगाड़ी। आख़िरी 10-12 ओवरों में भारतीय बल्लेबाज तेज़ी नहीं ला पाए और 300 के आसपास जाने का मौका निकल गया। 281/7 सम्मानजनक था, पर इस सपाट पिच और शाम की संभावित ओस के हिसाब से ‘पर’ स्कोर नहीं लगा।

ऑस्ट्रेलिया के लिए पीछा करने की स्क्रिप्ट साफ थी—नई गेंद निकलने का इंतज़ार, फिर स्ट्राइक रोटेशन के साथ गैप में चौके। बेथ मूनी (74 गेंदों पर नाबाद 77) ने वही किया जिसके लिए वह जानी जाती हैं—अति-खतरा लिए बिना बल्लेबाजी पर नियंत्रण। उनका बैट-फेस लेट खुला, पॉइंट-थर्ड मैन के बीच सिंगल्स निकले और जब लाइन भटकी, तो कवर-ड्राइव निकलता गया।

फीबी लिचफील्ड ने बीच के ओवरों में रफ्तार बनाए रखी—उनके शॉट्स ने फील्ड को फैलाया, जिससे मूनी को सिंगल डबल जुटाने में आसानी हुई। अंत में, एनाबेल सदरलैंड (50 गेंदों पर नाबाद 52) ने काम पूरा किया—क्रॉस-सीम गेंदों पर फ्रंट-फुट से स्मूद स्ट्रोक्स, और लॉन्ग-ऑन/मिडविकेट की दिशा में बिना जोखिम लिए गियर्स बदलना।

ऑस्ट्रेलिया की रन-रेट 6.36 के आसपास रही—मतलब गेंदबाज दबाव बना ही नहीं पाए। भारतीय स्पिनरों को ग्रिप नहीं मिली, और तेज़ गेंदबाजों की लेंथ बार-बार गुड-लेंथ टप्पे पर अटकी रही। नतीजा—डॉट-बॉल प्रतिशत घटा और पार्टनरशिप टूटने का इंतज़ार लंबा होता गया।

कहाँ चूकी भारत, क्या किया बेहतर ऑस्ट्रेलिया—और आगे क्या?

सबसे बड़ा फर्क डेथ ओवर्स की गुणवत्ता में दिखा। भारत की पारी में शुरुआत शानदार, पर अंतिम ओवरों में बाउंड्री कम। वहीं ऑस्ट्रेलिया ने पावरप्ले से ही ‘रन-रेट अंडर कंट्रोल’ रखी, जिससे आख़िर में सिर्फ़ फिनिशिंग भर करनी थी। भारत को वहां वैरिएशन—स्लोअर बाउंसर, वाइड यॉर्कर, और स्टंप-टू-स्टंप हार्ड लेंथ—की कमी खली।

कप्तानी के मोर्चे पर हरमनप्रीत कौर ने मैच के बाद कहा कि यह टीम ऑस्ट्रेलिया को किसी भी दिन हरा सकती है। वह आत्मविश्वास ड्रेसिंग रूम में मौजूद भी दिखा—ओपनिंग साझेदारी और मिडल-ऑर्डर की उपयोगी पारी इसका सबूत हैं। ऑस्ट्रेलियाई कप्तान एलिसा हीली ने भी माना कि यह भारतीय यूनिट अब पहले से ज्यादा ‘स्टेबल’ है। सीरीज़ के नजरिये से यह दिलचस्प संदेश है—मतलब आगे कड़ी टक्कर की संभावना पूरी है।

बॉलिंग की बात करें तो दीप्ति शर्मा ने 10 ओवर सटीक डाले, पर विकेट नहीं आया। ऑफ-स्पिनर्स के लिए यह पिच आसान नहीं थी—ओस ने ग्रिप घटाई, और मूनी जैसे लेफ्ट-हैंडर ने इन-टू-द-आर्क खेलकर रिस्क कम रखा। ऐसे में भारत को एक ‘इंपैक्ट ओवर’ की सख्त जरूरत थी—जहां 6-8 गेंदों में दो मौके बनें। वो ओवर नहीं आया।

ऑस्ट्रेलिया का ‘कंट्रोल्ड एग्रेशन’ शानदार रहा। उन्होंने रिस्क को ओवर-टू-ओवर बांटा, बाउंड्री हिट करने के लिए खास गेंदों का इंतजार किया, और फसने पर स्ट्राइक रोटेट करके ओवर निकलवा दिए। यह वही मॉडल है जिसने उन्हें लंबे समय से विश्व क्रिकेट में आगे रखा है—गति से ज्यादा दिशा पर भरोसा, और परिस्थिति के हिसाब से फील्ड को धकेलना।

भारतीय बल्लेबाजी में एक पॉजिटिव—टॉप-3 का रन-टेम्पो। स्मृति का फॉर्म मिडिल में आत्मविश्वास भर देता है। प्रतीका रावल ने लंबी पारी खेलकर दिखाया कि वह ओडीआई टेम्पो समझती हैं—सिंगल-डबल की रफ्तार अच्छी रही। हर्लीन देओल की फिफ्टी ने संकेत दिया कि भारत को नंबर 4-5 पर स्टेबिलिटी मिल सकती है। चुनौती अब यह है कि आख़िरी 10 ओवर में 90-100 की रफ्तार कैसे हासिल हो—यहीं ऑस्ट्रेलिया से पीछे रह गए।

फील्डिंग फैक्टर भी अहम रहा। लिचफील्ड का डायरेक्ट-हिट रन-आउट भारत के लिए महंगा साबित हुआ। ऑस्ट्रेलिया की आउटफील्ड में स्लाइडिंग, एंगल कट करना, और थ्रो की स्पीड—ये सब छोटे-छोटे फर्क बनकर बड़े नतीजे में बदले। दूसरी तरफ, भारत को 50वें ओवर तक वही तीव्रता बनाए रखने की जरूरत रहेगी—खासकर तब जब ओस गेंद को फिसलने पर मजबूर कर दे।

आगे की राह? भारत को अगले मैच में दो चीजें साफ करनी होंगी—पावरप्ले में एक अतिरिक्त आक्रामक योजना (स्लिप/गली का आक्रामक इस्तेमाल, शुरुआत में हार्ड लेंथ) और डेथ में विविधता। बल्लेबाजी में, आख़िरी 8-10 ओवर के लिए एक क्लियर फिनिशिंग टेम्पलेट—किसे एंकर करना है, किसे हिट करना है—यही फर्क बनाता है।

ऑस्ट्रेलिया इस जीत से सिर्फ 1-0 की बढ़त में नहीं, बल्कि मानसिक बढ़त में भी है। पर हीली का यह कहना कि भारतीय टीम सबसे ‘स्टेबल’ दिख रही है, मेज़बान के लिए प्रेरक संकेत है। भारत के पास स्किल है, बस दिन का नियंत्रण चाहिए।

मैच से जुड़े कुछ अहम पल और सबक:

  • ओपनिंग स्टैंड: 100 रन में नींव मजबूत, पर बीच में गति टूटना महंगा पड़ा।
  • क्रूशियल डिस्मिसल्स: मंधाना का रन-आउट और हर्लीन की स्टंपिंग—दोनों ने रफ्तार कम की।
  • ऑस्ट्रेलियाई टेम्पो: मूनी का ‘लो-रिस्क, हाई-रिटर्न’ मॉडल और सदरलैंड का कूल फिनिश।
  • गेंदबाजी रणनीति: भारत को पावरप्ले में ‘शेप इन’ और डेथ में ‘डबल-बाउंसर/वाइड-यॉर्कर’ पर काम करना होगा।
  • परिस्थितियां: शाम की नमी ने स्पिन को न्यूट्रल किया; बैक-ऑफ-लेंथ पर रन बनते रहे।

साफ है—सीरीज़ अभी खुली है। भारत के पास टॉप-ऑर्डर फॉर्म है, मिडल में विकल्प हैं, और कप्तान का भरोसा भी। दूसरी ओर, ऑस्ट्रेलिया अपनी मशीन जैसी सटीकता के साथ उतर रहा है—एक रोल के बाद दूसरा रोल, बिना शोर-शराबे के। अगले मुकाबले में पहली 15 ओवरों की लड़ाई तय करेगी कि कहानी किस दिशा में मुड़ती है—क्योंकि वहीं से बाकी सब आसान या मुश्किल बनता है।