H-1B वीजा योजना पर फ्लोरिडा के गोवर्नर रोन डेसैंटिस का कठोर प्रहार

H-1B वीजा योजना पर फ्लोरिडा के गोवर्नर रोन डेसैंटिस का कठोर प्रहार सित॰, 21 2025

डेसैंटिस की टिप्पणी और उनके तर्क

अगस्त 2025 में फॉक्स न्यूज़ के ‘The Ingraham Angle’ पर बात करते हुए फ्लोरिडा के गवर्नर रोन डेसैंटिस ने H-1B वीजा को ‘टोटल स्कैम’ और ‘कॉटेज इंडस्ट्री’ कहकर बखूबी निशाना बनाया। उनके अनुसार, बड़ी कंपनियां इस योजना का फायदा उठाकर अमेरिकी कर्मचारियों को निकाल देती हैं, फिर वही पद विदेशी हाइ‑ब्रिड कर्मचारियों से भर देती हैं। इस बात को उन्होंने स्पष्ट शब्दों में बताया: “हमारे पास हमारे अपने लोग हैं, फिर क्यों विदेशियों को लाएँ?”

डेसैंटिस ने भारत पर विशेष ध्यान देते हुए कहा कि इस योजना के तहत अधिकांश आवेदन भारतीय उम्मीदवारों से आते हैं। उन्होंने बताया कि 2000 के बाद से भारत, चीन और अन्य देशों से स्वीकृत H-1B आवेदनों की संख्या दोगुनी हो गई है, जिससे अमेरिकी नौकरियों पर दबाव बढ़ रहा है। उनका दावा है कि कंपनियां अक्सर अमेरिकियों को प्रशिक्षण देती हैं, फिर उन्हें हटाकर विदेशी कर्मचारियों को रख लेती हैं।

इसके अलावा, डेसैंटिस ने तकनीकी परिवर्तन से जुड़ी नई चिंता जताई। उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के कारण युवा अमेरिकी कामगारों की नौकरियां खतरे में हैं, और तब विदेशी कामगारों को और अधिक लाना एक वर्जित कदम है। “AI हमें नौकरी से बाहर कर रहा है, फिर हम क्यों विदेशियों को और लाएँ?” उनका सवाल यही था।

प्रभाव और आगे की संभावनाएँ

डेसैंटिस के बयान का समय coincides with US Commerce Secretary Howard Lutnick के द्वारा घोषित किए जा रहे बड़े बदलावों से भी जुड़ा है। अमेरिकी सरकार H-1B वीजा की लॉटरी प्रणाली को वेतन‑आधारित प्रणाली में बदलने की योजना बना रही है, जिससे एंट्री‑लेवल पदों को विदेशी भर्ती के लिए बंद किया जा सकेगा। केवल शीर्ष पदों पर ही विदेशी कामगारों को अनुमति होगी, जिससे रोजगार की प्राथमिकता अमेरिकियों को दी जा सके।

यह बदलाव कई पहलुओं को छेड़ेगा:

  • तकनीकी कंपनियों को अधिक वेतन देना पड़ेगा, जिससे अमेरिकी विशेषज्ञों को आकर्षित किया जा सके।
  • कुशल भारतीय पेशेवरों की लंबी अवधि की नियोजित नौकरियां जोखिम में पड़ सकती हैं।
  • यदि नई नीति लागू होती है, तो अमेरिकी स्टार्ट‑अप्स और आईटी फर्मों को प्रोजेक्ट डिलीवरी में देरी का सामना करना पड़ सकता है।

डेसैंटिस ने यह भी कहा कि यह कदम ट्रम्प प्रशासन की ‘America First’ नीति का विस्तार है। उनका मानना है कि जब तक अमेरिकी रोजगार नहीं सुरक्षित होते, तब तक ऐसी कोई भी वीजा योजना सही नहीं हो सकती। इस बयान से यह स्पष्ट हो गया कि आगामी चुनावों में इमीग्रेशन मुद्दे पर राजनीति की तीव्रता बढ़ रही है।

इसी बीच, भारतीय प्राविधिक समुदाय में अनिश्चितता बढ़ गई है। कई भारतीय इंजीनियर अब अपने करियर की स्थिरता को लेकर चिंतित हैं। कुछ कंपनियां अब लम्बी अवधि के अनुबंध देने से बच रही हैं, क्योंकि नई नीति के लागू होने की संभावना बढ़ रही है।

परन्तु इस बदलाव के समर्थकों का यह भी कहना है कि H-1B प्रणाली ने कई दशकों तक अमेरिकी तकनीकी नवाचार में अपरिहार्य योगदान दिया है। यह प्रणाली न केवल अमेरिकी कंपनियों को वैश्विक प्रतिभा से जोड़ती रही, बल्कि भारत सहित कई देशों को भी उच्च कौशल वाले कार्यबल विकसित करने में मदद की।

आगामी महीनों में कांग्रेस और प्रशासन दोनों को इस मुद्दे पर गहराई से चर्चा करनी होगी। यदि नई वेतन‑आधारित प्रणाली लागू होती है, तो उसके प्रभाव को मापना और छोटे और मध्यम उद्यमों को समायोजित करना एक बड़ी चुनौती बन जाएगा।

डेसैंटिस की टिप्पणी, ट्रम्प प्रशासन की नीति दिशा, और हाउस में चल रहे इमीग्रेशन सुधार के मसले सभी एक साथ मिलकर अमेरिकी रोजगार बाजार की नई दिशा तय करेंगे। यह देखना होगा कि इन बदलावों से केवल घरेलू नौकरियों को ही नहीं, बल्कि वैश्विक प्रतिभा प्रवाह को भी क्या असर पड़ेगा।