धर्मेंद्र प्रधान को मिला बिहार चुनाव रणनीति का जिम्मा: क्यों और क्या बदलाव होंगे

धर्मेंद्र प्रधान की चुनावी पृष्ठभूमि
जब भाजपा ने हाल ही में बिहार चुनावों के लिए नया रणनीतिकार चुना, तो सभी ने सोचा कि पीछे कौन‑सी कहानी है। उत्तराखंड से लेकर त्रिपुरा तक की मोहिमों में उन्होंने जहाँ‑जहाँ काम किया, वहाँ परिणाम सीधे‑सादे रहे। 2010 का साल उनके करियर का पहला बड़ा मोड़ बना, जब नितिन गडकरी के तहत उन्हें बिहार‑इन‑चार्ज बनाया गया। उस समय NDA ने 206 सीटों से भारी जीत हासिल की, जो आज भी भारत के इतिहास में एक बेजोड़ प्रदर्शन माना जाता है।
सिर्फ बिहार ही नहीं, 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने फिर से काम किया और पार्टी ने बिहार में 40 में से 31 सीटें जीतीं। इस सफलता को अक्सर मतदाता‑संतुलन और गवर्नेंस‑फोकस के मिश्रण के कारण बताया जाता है, पर मुख्य वजह उनका माइक्रो‑मैनेजमेंट था – हर निर्वाचन क्षेत्र की बारीकी से जाँच, स्थानीय मुद्दों को समझना और उन्हें राष्ट्रीय एजेंडा से जोड़ना।
उसके बाद 2015 में अमित शाह के तहत फिर से बिहार‑इन‑चार्ज बनना उनके लिए एक वाकई‑विचारशील कदम था। इस बार उन्होंने कोयला, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी निचली‑स्तर की योजनाओं को तेज़ी से लोगों तक पहुँचाने पर ध्यान दिया। परिणाम? पार्टी के पास जमीन‑से‑जमीन के संपर्क को मजबूत करने का एक ठोस तरीका था।
हाल ही में 2024 में हरियाणा में उनका सबसे चमकदार प्रदर्शन देखा गया। चाहे anti‑incumbency की लहर क्यों न थी, भाजपा ने 90 में से 48 सीटें जीत लीं – यह 2014 के बाद से सबसे बेहतर परिणाम था। इस जीत में उनके ‘पार्टी‑के‑साथ‑जन‑का‑संबंध’ को फिर से जीवित करने की क्षमता दिखी। उन्होंने न केवल युवा वोटर को आकर्षित किया, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी समर्थन बढ़ाया।
उन्हीं सालों में उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल (नंदिग्राम) और कई छोटे‑छोटे राज्यों में उन्होंने एक ही समय में कई टीमों को संभाला। त्रिपुरा, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश में उनका योगदान अक्सर ‘गहराई‑से‑विचारशील अभियान’ के नाम से जाना जाता है। उनका तरीका सरल था: रोज़ाना प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र की स्थिति को अपडेट करना, आवश्यक विकास कार्यों की लिस्ट बनाना और फिर उन्हें स्थानीय कम्युनिटी में प्रस्तुत करना।
इन सभी कारनामों के कारण भाजपा ने उनका नाम सबसे भरोसेमंद रणनीतिकार के रूप में तय कर लिया। और अब वही नाम बिहार के 243 सीटों वाले चुनाव में भी लाया गया है। उनका काम केवल योजना बनाना नहीं, बल्कि उसे जमीन‑पर उतारना भी है। यह यही कारण है कि उन्हें धर्मेंद्र प्रधान कहा जाता है, जो केवल एक नाम नहीं बल्कि एक भरोसा भी दर्शाता है।
बिहार चुनाव में भाजपा की नई योजना
बिहार के मामले में भाजपा ने दो प्रमुख सह‑इन्चार्ज चुनें हैं – जल शक्ति मंत्री सी.आर. प्रतिल और उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य। इन तीनों का एक साथ काम करना एक टीम‑जैसे माहौल को दर्शाता है, जहाँ एक ही लक्ष्य पर कई कोनों से दबाव डाला जा रहा है।
- पहला कदम: हर विधानसभा क्षेत्र का दैनिक विश्लेषण। टीम सुबह‑शाम सभी 243 सीटों की रिपोर्ट तैयार करती है, जिससे चुनाव के हर चरण पर सही‑समय पर निर्णय लिए जा सकें।
- दूसरा: जमीनी स्तर पर कल्याण योजना का वादा। सरकार की प्रमुख योजनाओं – जैसे कि जनधन, प्रोभलग्य स्कीम, जल संरक्षण – को सीधे गाँव‑गाँव में पहुँचाने की कोशिश की जाती है। यह रणनीति ‘विकास‑के‑साथ‑कमीनी‑संतुष्टि’ पर आधारित है।
- तीसरा: युवा और सोशल मीडिया पर फOCUS। सोशल प्लेटफ़ॉर्म पर छोटे‑छोटे वीडियो, लाइव सेशन और प्रश्न‑उत्तर सत्रों के माध्यम से पार्टी के संदेश को तेज़ी से फैलाया जाता है।
- चौथा: गठबंधन को मजबूत करना। जेडीयू के साथ साझेदारी को नई समझौतों के साथ पक्की किया जा रहा है, ताकि विकास‑कार्यक्रमों में एकता बनी रहे।
इन कार्यों के बीच, प्रमुख मुद्दे भी स्पष्ट हो रहे हैं। विकास के अलावा, कानून‑व्यवस्था और सामाजिक न्याय को चुनावी एजेंडा में रखकर दोनों ही वर्गों – शहर व ग्रामीण – को आकर्षित किया जाना है। यही वह फ़ोकस है, जहाँ भाजपा ने पिछले चुनावों में भी सफलता पाई थी।
विरोधी पार्टियों की बात भी अलग नहीं है। तेजस्वी यादव की सामाजिक न्याय योजना, ‘बदलाव की हवा’ को लेकर बड़ी उठानों को देखा जा रहा है। साथ ही, प्रसरित केशोर की नई जैन सुराज पार्टी भी चुनाव में एक अज्ञात कारक बनकर उभरी है। यह नई पार्टी छोटे‑मोटे एरिया में गठबंधन बनाकर बड़े पैमाने पर असर डाल सकती है।
इन सभी चुनौतियों को देखते हुए, भाजपा ने भविष्य की तैयारियों में भी कदम बढ़ाया है। वे केवल 2025 के बिहार चुनाव नहीं, बल्कि 2026 में पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु के लिए भी रणनीति बनाते हुए एक व्यापक राष्ट्रीय ढाँचा तैयार कर रहे हैं। इसका मतलब यह है कि धर्मेंद्र प्रधान की टीम अब सिर्फ बिहार के लिए नहीं, बल्कि पूरी पार्टी के लिए एक ‘स्ट्रेटेजिक हब’ बन रही है।
ऐसे में, सवाल यह बन जाता है कि क्या इस टीम की मेहनत और धर्मेंद्र प्रधान की ‘विजयी सोच’ अंत में बिहार के राजनैतिक नक्शे को बदल देगी? यह तो समय ही बताएगा, पर इतना तो तय है कि अब तक की सैद्धांतिक तैयारियों और व्यावहारिक कदमों को देखते हुए, भाजपा के पास एक ठोस, ग्राउंड‑लेवल प्लान है।