चैत्र नववर्ष 2025 की सातवी: देवी कालरात्रि की पूजा विधि, कथा और लाभ

पूजा विधि और महत्वपूर्ण बातें
चैत्र नववर्ष के सातवें दिन, यानी 4 अप्रैल 2025, को कालरात्रि की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन को शुभ माना जाता है क्योंकि देवी अपने सबसे तीव्र रूप में प्रकट होती हैं, जो अंधकार, भय और नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती हैं। पूजा में सबसे पहले हरा रंग पहना जाता है, क्योंकि यह नयी शुरुआत, विकास और समृद्धि का प्रतीक है। घर के गूढ़ में या मंदिर में जल जलाकर धूप-दीपजल से शुद्धिकरण किया जाता है।
भोग में मुख्य रूप से गुड़ का प्रयोग किया जाता है। गुड़ के लड्डू, चकू और खीर को देवी को अर्पित किया जाता है। गुड़ को शुद्ध ऊर्जा का स्रोत माना जाता है, जो नकारात्मक प्रभावों को दूर करता है। इसके साथ ही लाल फूल, काली कमल (पैसिफ्लोरा) और नींबू की माला को मुंडा के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह संयोजन शक्ति, सुरक्षा और शांति प्रदान करता है।
पूजा का समय दो भागों में बाँटा जाता है: सुबह के सूर्योदय के बाद का समय और शाम के सूर्यास्त के समय। स्थानीय पंचांग के अनुसार, सबसे शुभ मुहूर्त चुनना आवश्यक है, ताकि मंत्रों की प्रभावशीलता अधिकतम हो।
- रंग: हरा
- भोग: गुड़ आधारित मिठाइयाँ
- फूल: काली कमल, लाल गुलाब, नींबू की माला
- चक्र: सहस्रार (टॉप) चक्र से जुड़ा

कालरात्रि की कथा और आध्यात्मिक लाभ
पुराणों में बताया गया है कि शुम्भ और निशुम्भ नामक दो दानव विश्व को अराजकता में ढके हुए थे। कई देवताओं ने उनका निवारण करने का प्रयास किया, पर सभी असफल रहे। फिर इंद्र ने माता पार्वती से सहायता मांगी। पार्वती ने देवी चंडी (काली) का रूप धारण किया और दानवों को पराजित किया। परन्तु चंडी को चंड, मुंड और रक्तबीज नामक तीव्र दानवों से भी जूझना पड़ा। इन दुर्जेय शत्रुओं को हराने के लिये चंडी ने अपनी गहरी और भयावह रूप – कालरात्रि – धारण किया।
खासकर रक्तबीज ने अपनी रक्तधारा से अनेक प्रतिकृतियों को जन्म दिया। देवी ने रणनीति में बदलाव किया: उन्होंने रक्त को स्वयं पी लिया, जिससे उस रक्त की बूंदें कहीं भी गिर न सकें और नई प्रतिकृतियां न बनें। इस चतुर उपाय से उन्होंने रक्तबीज को समाप्त कर दिया, और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में शांति और संतुलन स्थापित किया।
इन पौराणिक कथाओं के अलावा, कालरात्रि की पूजा के कई आध्यात्मिक लाभ भी हैं:
- अंधकार, भय और नकारात्मक ऊर्जा का नाश
- काली जादू और बुरी दृष्टि से सुरक्षा
- जीवन की कठिनाइयों का सामना करने में साहस और शक्ति का वृद्धि
- आंतरिक शुद्धि, मन की शांति और आध्यात्मिक उन्नति
- बाधाओं और शत्रुओं को पराजित करने की क्षमता
- जीवन में संतुलन और सामंजस्य का सृजन
इन लाभों को प्राप्त करने के लिये सिर्फ शारीरिक पूजा ही नहीं, बल्कि मन से समर्पित भाव, सच्ची श्रद्धा और सही मंत्रजाप आवश्यक है। प्रमुख मंत्रों में प्रथम मंत्र "ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:" को बार-बार जपना चाहिए। वैकल्पिक सरल मंत्र “ओम् देवी कालरात्र्यै नमः” भी प्रयुक्त होते हैं।
समय के साथ, आधुनिक जीवन में भी लोग इन प्राचीन रीति-रिवाज़ों को अपनाते हैं। वे घर के छोटे पूजास्थानों में हरा वस्त्र बिछाते हैं, गुड़ के गोलक बनाते हैं और सुबह या शाम की पवित्र धूप में मंत्रों का उच्चारण करते हैं। इस प्रकार, वे न केवल पारंपरिक संस्कृति को जीवित रखते हैं, बल्कि आत्मिक सुरक्षा और मनोवैज्ञानिक स्थिरता भी पाते हैं।