राष्ट्रीय महिला दिवस 2025: सरोजिनी नायडू की जयंती और भारत की महिला सशक्तिकरण की प्रतिबद्धता

राष्ट्रीय महिला दिवस 2025: सरोजिनी नायडू की जयंती और भारत की महिला सशक्तिकरण की प्रतिबद्धता नव॰, 20 2025

भारत भर में गुरुवार, 13 फरवरी 2025 को राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाएगा — एक ऐसा दिन जो सिर्फ एक जन्मदिन की याद नहीं, बल्कि एक पूरी पीढ़ी के संघर्ष, साहस और सफलताओं को समर्पित है। यह दिन सरोजिनी नायडू के 146वें जन्मदिन के अवसर पर मनाया जा रहा है, जिन्होंने न केवल कविता के जरिए दिल जीते, बल्कि राजनीति के क्षेत्र में भी ऐतिहासिक कदम रखे। ये दिन भारत की महिलाओं की अदृश्य लड़ाइयों को रोशनी में लाता है — जहां संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के तहत समान अधिकारों की गारंटी है, लेकिन घरों, ऑफिसों और स्कूलों में अभी भी लिंगभेद की दीवारें खड़ी हैं।

सरोजिनी नायडू: कवि से राजनेता तक की अद्भुत यात्रा

सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद, ब्रिटिश भारत (आज का तेलंगाना) में हुआ था। उनके पिता, अघोरेनाथ चट्टोपाध्याय, एक वैज्ञानिक और शिक्षाविद थे, जिन्होंने हैदराबाद एसोसिएशन की स्थापना करके महिला शिक्षा के लिए जमीन बनाई। यही वातावरण था जिसने सरोजिनी को एक बचपन के जादूगर बनाया — 12 साल की उम्र में ही उन्होंने कविताएँ लिखनी शुरू कर दीं। बाद में वे 'भारत की बुलबुल' के नाम से प्रसिद्ध हुईं।

लेकिन उनकी वास्तविक शक्ति कविताओं में नहीं, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में थी। 1925 में, वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष बनीं। 1930 में, उन्होंने ऑल इंडिया वुमेन्स कॉन्फ्रेंस का अध्यक्षता किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ महिलाओं के मताधिकार की मांग की। उनके प्रयासों का नतीजा आया — संविधान ने भारत में महिलाओं को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में समान अधिकार दिए। 1947 के स्वतंत्रता के बाद, वे यूनाइटेड प्रोविंसेज (आज का उत्तर प्रदेश) की पहली महिला राज्यपाल बनीं।

राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: क्या है अंतर?

कई लोग सोचते हैं कि राष्ट्रीय महिला दिवस और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एक ही बात है। लेकिन अंतर बहुत गहरा है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाता है — यह 1917 में रूसी महिलाओं की बंदी और 1975 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसे आधिकारिक रूप देने के बाद वैश्विक आंदोलन बन गया। इसका मुख्य उद्देश्य वैश्विक स्तर पर महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई है।

वहीं, राष्ट्रीय महिला दिवस सिर्फ भारत के लिए है। यह सरोजिनी नायडू के जीवन की याद में है, लेकिन उससे आगे बढ़कर — यह भारत की हर उस महिला के लिए है जिसने घर के अंदर अपना स्वाभिमान बचाया, स्कूल में शिक्षा पाने के लिए लड़ा, या राजनीति में अपनी आवाज उठाई। इसका मुख्य उद्देश्य है: भारतीय महिलाओं के योगदान को राष्ट्रीय नोट पर लाना।

आज का वास्तविक चुनौती: संविधान के अनुच्छेद और वास्तविकता के बीच का अंतर

2025 में भी, भारत में महिलाएं दिन-प्रतिदिन ऐसी चुनौतियों का सामना कर रही हैं जिनके बारे में अखबारों में लिखा नहीं जाता। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में महिलाओं की औसत आय पुरुषों की तुलना में 34% कम है। ग्रामीण क्षेत्रों में एक तिहाई महिलाएं अभी भी अपने घरों से बाहर निकलने के लिए पुरुषों की अनुमति मांगती हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिर्फ आर्थिक समस्या नहीं, बल्कि सांस्कृतिक रूढ़ियों का भी परिणाम है। जब एक लड़की को बताया जाता है कि "पढ़ने की जरूरत नहीं, शादी कर लो" — तो यह संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है। राष्ट्रीय महिला दिवस का मकसद यही है: इन रूढ़ियों को चुनौती देना।

2025 के लिए क्या योजनाएँ हैं?

2025 के लिए क्या योजनाएँ हैं?

इस बार, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी करने की योजना बनाई है — जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के आंकड़े शामिल होंगे। दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और कोलकाता में स्कूलों और कॉलेजों में सेमिनार, कविता पाठ और स्टूडेंट लीडरशिप वार्ताएँ आयोजित की जा रही हैं।

एक विशेष आयोजन होगा — जहां ग्रामीण महिलाओं को उनके अपने अनुभवों के आधार पर एक डॉक्यूमेंट्री दिखाई जाएगी। इसमें एक महिला कहेगी: "मैंने अपने बेटे को पढ़ाया, लेकिन अपने लिए पढ़ने का मौका नहीं मिला। आज मैं चाहती हूँ कि मेरी बेटी वही करे जो मैंने सपना देखा।"

महिलाओं के लिए भविष्य क्या है?

यह दिन सिर्फ याद करने का नहीं, बल्कि कार्रवाई करने का भी आह्वान है। जब तक एक लड़की को बाथरूम तक जाने के लिए भी डर लगेगा, तब तक राष्ट्रीय महिला दिवस एक नारा बना रहेगा। लेकिन अगर हम इस दिन को सिर्फ एक फोटो शेयर करने के लिए नहीं, बल्कि एक बदलाव के लिए इस्तेमाल करें — तो आने वाले सालों में यह दिन भारत की एक नई पहचान बन सकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

राष्ट्रीय महिला दिवस और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस में क्या अंतर है?

राष्ट्रीय महिला दिवस 13 फरवरी को सरोजिनी नायडू के जन्मदिन पर भारत में मनाया जाता है, जबकि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को विश्वभर में मनाया जाता है। पहला भारतीय महिलाओं के योगदान को समर्पित है, दूसरा वैश्विक महिला अधिकारों के लिए एक आंदोलन है।

सरोजिनी नायडू ने महिला अधिकारों के लिए क्या किया?

सरोजिनी नायडू ने 1930 में ऑल इंडिया वुमेन्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष के रूप में महिलाओं के मताधिकार के लिए आंदोलन शुरू किया। उनके दबाव से ब्रिटिश शासन ने 1935 के भारत सरकार अधिनियम में महिलाओं के लिए मताधिकार शामिल किया, जो बाद में संविधान का हिस्सा बना।

आज भारत में महिलाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती क्या है?

सबसे बड़ी चुनौती संविधान के अधिकारों और वास्तविक जीवन के बीच का अंतर है। यहाँ लिंगभेद, शारीरिक हिंसा, वेतन असमानता और शिक्षा में पहुँच की कमी बड़ी समस्याएँ हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में एक तिहाई महिलाएँ अभी भी अपने घर से बाहर निकलने के लिए अनुमति मांगती हैं।

राष्ट्रीय महिला दिवस पर सरकार क्या कर रही है?

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय इस दिन पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी करेगा, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के आंकड़े शामिल होंगे। साथ ही, स्कूलों, कॉलेजों और ग्रामीण समुदायों में जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं।

क्या यह दिन सिर्फ सरोजिनी नायडू के लिए है?

नहीं। यह दिन सरोजिनी नायडू के जीवन की याद में है, लेकिन इसका उद्देश्य भारत की हर उस महिला को सम्मानित करना है जिसने अपने परिवार, समुदाय या राष्ट्र के लिए अपना जीवन समर्पित किया है — चाहे वह एक ग्रामीण शिक्षिका हो या एक एआई वैज्ञानिक।

हम सामान्य नागरिक के रूप में इस दिन को कैसे मना सकते हैं?

आप अपने घर में एक बात शुरू कर सकते हैं — अपनी बेटी को उसके बेटे के बराबर अवसर दें। अपनी बहन को उसके काम के लिए सराहना करें। एक लड़की को उसकी शिक्षा में समर्थन दें। यही छोटी-छोटी क्रियाएँ राष्ट्रीय महिला दिवस को असली बनाती हैं।