जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा: एक महत्वपूर्ण कदम की दिशा में प्रगति
अक्तू॰, 19 2024जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम
जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की दिशा में केंद्र सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम आगे बढ़ाया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पहले भी आश्वासन दिया था कि उचित समय पर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा। लेकिन हाल में जो संशोधन किए गए हैं, उन्होंने लेफ्टिनेंट गवर्नर की शक्तियों को काफी बढ़ा दिया है, जिससे यह प्रक्रिया लंबी और अनिश्चित हो सकती है।
पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने बार-बार सरकारी प्रक्रिया में तीब्रता की मांग की है। उनका कहना है कि जब तक पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल नहीं होता, तब तक चुनाव कराना असंभव है। यह सिर्फ राजनीतिक दलों की मांग नहीं है, बल्कि क्षेत्र के लोगों की भी यही चाह है कि उन्हें अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं के हाथों में लेने का अवसर मिले।
संघ शासन की केंद्रीयकृत नीति
हालिया संशोधनों ने लेगिस्लेटिव और एग्जीक्यूटिव स्वायत्तता को बहुत हद तक कम कर दिया है। अब लेफ्टिनेंट गवर्नर के पास अधिक शक्तियां हैं, जबकि मुख्यमंत्री और विधायिका की शक्ति सिमट गई है। इसका मतलब यह है कि अब बहुत से प्रशासनिक निर्णय केंद्र के माध्यम से ही लिए जाएंगे। इससे स्थानीय प्रशासनों के सामने मुश्किलें बढ़ सकती हैं, क्योंकि उनके हाथ बांध दिए गए हैं।
वर्ष | घटनाक्रम |
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2019 | जम्मू-कश्मीर को धारा 370 हटाकर केंद्र सरकार ने राज्य का दर्जा समाप्त किया |
2021 | नई प्रशासनिक संरचना लागू की गई |
यह बदलाव केवल अटकलबाज़ियाँ नहीं हैं, बल्कि इनसे क्षेत्र में वास्तविक प्रभाव पड़ता है। क्षेत्रीय दलों और नागरिकों का मानना है कि इस तरह के केन्द्रित शासन से उनकी क्षेत्रीय आकांक्षाओं का गला घोंटा जा रहा है। इससे जनता में असंतोष बढ़ रहा है।
समर्थन की आवाज़
राजनीतिक दल एकजुट होकर राज्य की बहाली की मांग कर रहे हैं। उनका मानना है कि प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र पर रोक लगाने से न केवल भागीदारी कम हो रही है, बल्कि यह भी समझ में आता है कि जहाँ तक सूखे जैसे मुद्दे हैं, उन्हें स्थानीय स्तर पर अनदेखा किया जा रहा है।
इस का सबसे बड़ा असर आम जनता पर पड़ा है। उन्हें लगता है कि उनकी चिंताओं को कोई सुन नहीं पा रहा, क्योंकि सारा नियंत्रण किसी और के हाथ में चला गया है। केंद्र सरकार को चाहिए कि वे एक स्पष्ट रोडमैप दें, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह प्रक्रिया कब पूरी होगी।
चुनौतियाँ और संभावनाएँ
जब भी जम्मू-कश्मीर का मुद्दा उठाया जाता है, तो कई स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय मौकों पर इसकी चर्चा होती है। इस क्षेत्र का अपना ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व है। एक पूर्ण राज्य के रूप में इसकी बहाली केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
केंद्र सरकार के सामने बड़ी चुनौती है कि कैसे वह संतुलन बनाए रखे। स्थानीय आत्मनिर्भरता और विस्तार में कमी की स्थिति को कैसे सुलझाए और उनकी जरूरतों को समझे, यह एक बड़ा सवाल है। अगर समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो इसका असर व्यापक हो सकता है, जो न केवल क्षेत्रीय स्थायित्व को प्रभावित करेगा, बल्कि देश की एकता पर भी सवाल खड़ा कर सकता है।