भारत-यूके फ्री ट्रेड डील पर फिर पड़ी ब्रेक: चुनावों के बाद हो सकती है नई शुरुआत

भारत-यूके फ्री ट्रेड डील पर फिर पड़ी ब्रेक: चुनावों के बाद हो सकती है नई शुरुआत मई, 7 2025

भारत-यूके फ्री ट्रेड एग्रीमेंट: आखिर क्यों अटक गई बातचीत?

मार्च 2024 में जब भारत-यूके FTA को लेकर टेबल पर दोनों देश आमने-सामने बैठे तो माहौल गर्म था। महीनों की बातचीत और सैकड़ों घंटों की चर्चाओं के बाद भी कामयाबी हाथ नहीं लगी। ट्रेड डील की खिचड़ी वो पक ही नहीं पाई, जिसकी सबको उम्मीद थी। आखिर ऐसा क्या अटका, जो कारोबारियों से लेकर दोनों सरकारों तक को निराशा हाथ लगी?

मुद्दा सबसे बड़ा बना टैरिफ में कटौती का। ब्रिटेन चाहता था कि भारत व्हिस्की, गिन और शराब पर लगने वाली भारी-भरकम ड्यूटी में कटौती करे। आंकड़े बताते हैं कि ब्रिटिश शराब पर भारत में 150% तक टैक्स लगता है। यूके चाहता है कि ये घटकर मात्र 40% पर आ जाए, जबकि भारत इसके लिए तैयार नहीं था। भारतीय व्यापारी डरते हैं कि विदेशी शराब मार्केट में उतरते ही देसी कारोबार को जबरदस्त झटका लगेगा।

दूसरी तरफ, भारत के लिए कृषि और डेयरी उत्पाद बड़ा सेंसेटिव मुद्दा है। भारत ने अपने डेयरी सेक्टर, खासकर दूध, पनीर और सेब जैसे प्रोडक्ट्स पर बाजार खोलने से साफ इनकार किया। यहां छोटे किसानों और घरेलू कंपनियों पर सीधा असर पड़ सकता था, जिसमें किसी सरकार को समझौता करना जोखिम उठाने जैसा माना जाता है।

मतभेद क्यों नहीं सुलझ पाए?

मतभेद क्यों नहीं सुलझ पाए?

यह सिर्फ टैरिफ या रेगुलेशन की बात नहीं थी। दोनों देशों के बीच उस सोच का भी फर्क नजर आया, जिसमें एक चाहता है तेज प्रगति और दूसरा चाहता है घरेलू हितों की सुरक्षा। सोशल सिक्योरिटी के मुद्दे पर, यूके भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स को और छूट देने को लेकर हिचकिचा रहा था। वहीं भारत चाहता था कि उसके नागरिकों को ब्रिटेन में ज्यादा मौके मिलें और सामाजिक सुरक्षा में राहत मिले।

हर बातचीत में एक और बात सामने आई—राजनीतिक अस्थिरता। भारत और ब्रिटेन दोनों में चुनावी साल है। कोई भी सरकार चाहे वो सनातन पार्टनरशिप की बात करे, पर घरेलू वोटरों की नाराजगी मोल लेने को तैयार नहीं दिखी। दोनों पक्षों ने बातचीत को अगले दौर के लिए टालना सही समझा।

फिलहाल इन चर्चाओं को स्थगित कर दिया गया है। चुनावी हलचल के बाद उम्मीद की जा रही है कि दोनों देश फिर से टेबल पर बैठेंगे और तर्कसंगत समझौते की तलाश करेंगे। भारत-यूके व्यापार समझौता इसलिए भी अहम है क्योंकि यह करीब 29 बिलियन डॉलर तक के द्विपक्षीय व्यापार को नई ऊंचाई दे सकता है। लेकिन जब तक घरेलू किसान, ट्रेड यूनियन्स और ब्रिटीश लॉबी संतुष्ट नहीं होती, यह डील पटरी पर आना मुश्किल ही लगेगा।

अब सबकी नजर चुनाव नतीजों और अगली सरकारों के रुख पर है। क्या नया नेतृत्व इस फ्री ट्रेड डील को लेकर ज्यादा लचीलापन दिखाएगा या फिर पुराने मुद्दे नए नामों के साथ चर्चा में बने रहेंगे? यही सवाल फिलहाल चर्चा में है।