जम्मू-कश्मीर की पूर्ण राज्यधिकार वापसी पर तेज़ हुई बहस: कब बदलेगी तस्वीर?

जम्मू-कश्मीर: पूर्ण राज्यधिकार की वापसी का सवाल, फिर गर्माए विवाद
जम्मू-कश्मीर में बीते छह वर्षों से अधर में लटका राज्यधिकार का मुद्दा अब और तेज़ हो गया है। 2019 में अनुच्छेद 370 हटने और प्रदेश के यूनियन टेरिटरी (यूटी) बनने के बाद यहां प्रशासनिक और राजनीतिक माहौल पूरी तरह बदल गया। लोगों के मन में सबसे बड़ा सवाल है— क्या और कब राज्य को उसका पुराना दर्जा और अधिकार मिलेंगे?
केंद्र सरकार की तरफ से समय-समय पर संकेत मिले हैं कि पूर्ण राज्यधिकार वापस देने का रास्ता खोला जा सकता है, लेकिन कोई साफ़ टाइमलाइन सामने नहीं आई। गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में बार-बार कहा है कि राज्यधिकार तभी बहाल होगा जब सरकार को लगेगा कि हालात पूरी तरह शांत और सुरक्षित हैं। इस पूरे मसले पर राष्ट्रीय सुरक्षा, स्थिरता और सांप्रदायिक सौहार्द को सबसे ऊपर रखा गया है।

स्थानीय नेताओं की चिंता और जनमानस की उम्मीद
पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला जैसे बड़े नेता लगातार सरकार पर दबाव बना रहे हैं कि राज्यधिकार की वापसी अब ज़रूरी है। उनका तर्क है कि यूटी का दर्जा जम्मू-कश्मीर को कई अधिकारों से वंचित करता है। सबसे बड़ा फर्क दिखता है पुलिसिंग, भूमि अधिकार और कानून बनाने की शक्ति में। मुख्यमंत्री की जगह अब यहां उपराज्यपाल के पास अधिक अधिकार हैं जिनकी नियुक्ति केंद्र से होती है। इससे जनता और लोकतंत्र के बीच सीधा संवाद कमजोर हुआ है।
लोगों की चिंता भी वाजिब है। यूटी स्टेटस के चलते स्थानीय सरकार की पॉलिसिंग, जमीन पर अधिकार और अहम मुद्दों पर तुरंत फैसले की क्षमता घटी है। छात्रों के एडमिशन से लेकर किसानों की जमीन, हर बात केंद्र से नियंत्रित हो रही है। लोगों को लगता है कि जम्मू-कश्मीर के युवाओं के लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व और विकास की दिशा तभी सही होगी जब राज्य को उसकी पूरी ताकत मिले।
सुप्रीम कोर्ट में भी इस मुद्दे की सुनवाई लंबित है— अगली तारीख 8 अगस्त 2025 रखी गई है, लेकिन कोर्ट पहले कह चुका है कि ये मामला संसद और सरकार के दायरे में आता है, न कि अदालत की सीधी दखल का। इससे एक बात साफ है कि अंतिम फैसला दिल्ली की सियासी जमीन पर ही होगा।
- विधान निर्माण शक्ति: राज्य में कानून बनाने की पूरी शक्ति होती है, जबकि यूटी को कई मामलों के लिए केंद्र की मंज़ूरी लेनी पड़ती है।
- प्रशासनिक ढांचा: राज्य का मुख्यमंत्री चुना जाता है, लेकिन यूटी में लेफ्टिनेंट गवर्नर नियुक्त होते हैं।
- पुलिस और जमीन का नियंत्रण: राज्य के पास स्थानीय पुलिस और जमीन का प्रबंधन होता है, यूटी में ये अधिकार केंद्र की तरफ शिफ्ट हो जाते हैं।
अगर राज्यधिकार बहाल करते हैं तो इसके लिए संविधान में बदलाव जरूरी है— संसद से बिल पास होगा और राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। प्रैक्टिकल तौर पर देखें तो केंद्र सरकार के पास आखिरी फैसला करने का अधिकार है। समर्थकों का मानना है कि इससे कश्मीरी अवाम के राजनीतिक अधिकार बहाल होंगे और लोकतांत्रिक प्रणाली को नई रफ्तार मिलेगी।