Amit Shah ने कोलकाता में ममता पर सीधा वार: 2026 की लड़ाई 'सुरक्षा बनाम सियासत' पर

कोलकाता की रैली में सुरक्षा की गूंज, ममता पर सीधा निशाना
कोलकाता में बीजेपी के विजय संकल्प कार्यक्रम में एक दमदार संदेश आया—“जमीन दे दो, एक परिंदा भी नहीं घुसेगा।” केंद्रीय गृहमंत्री Amit Shah ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर घुसपैठ को वोट बैंक की राजनीति से जोड़ते हुए तीखा हमला बोला और 2026 विधानसभा चुनाव को “राज्य के भविष्य और राष्ट्रीय सुरक्षा” का चुनाव बताया।
शाह ने आरोप लगाया कि तृणमूल सरकार जान-बूझकर सीमा बाड़बंदी में अड़ंगा डाल रही है। उनका दावा था कि बीएसएफ की भूमिका पर सवाल उठाए जाते हैं और फेंसिंग के लिए जमीन देने में देरी की जाती है। “जमीन दीजिए, हम सुनिश्चित करेंगे कि बंगाल की सीमा से परिंदा भी पार न जाए,” उन्होंने कहा। उन्होंने यह भी कहा कि तृणमूल का मकसद घुसपैठ जारी रखना और “वोट बैंक बढ़ाना” है, साथ ही अप्रत्यक्ष रूप से पार्टी के सर्वराष्ट्रीय महासचिव और मुख्यमंत्री के भतीजे अभिषेक बनर्जी को भविष्य का चेहरा बनाने की कोशिश का आरोप लगाया।
गृहमंत्री ने CAA को लेकर भी साफ कहा कि इसे लागू होने से कोई रोक नहीं सकता। केंद्र ने मार्च 2024 में नियमों की अधिसूचना जारी कर दी थी और ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। पश्चिम बंगाल सरकार CAA का विरोध करती रही है, जबकि बीजेपी इसे “पीड़ित शरणार्थियों के साथ न्याय” बताती है।
शाह ने पोस्ट-पोल हिंसा, महिलाओं के खिलाफ अपराध और “हिंदुओं पर हमले” के आरोपों के साथ तृणमूल की शासन शैली पर सवाल उठाए। 2021 विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा पर पहले भी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक समिति ने हाई कोर्ट को रिपोर्ट सौंपी थी, जिस पर अदालत ने गंभीर अपराधों की जांच के लिए केंद्रीय एजेंसी को निर्देश दिए थे। तृणमूल इन आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताती रही है और कहती है कि राज्य में कानून-व्यवस्था सामान्य है।
- शाह का संदेश: 2026 में बीजेपी “दो-तिहाई बहुमत” का दावा
- फोकस: बॉर्डर फेंसिंग, BSF की भूमिका और CAA का लागू होना
- आरोप: तृणमूल पर घुसपैठ को बढ़ावा देने और विपक्षी कार्यकर्ताओं पर हमलों का आरोप
- चेतावनी: “बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या के पीछे जिम्मेदारों से हिसाब होगा”

पृष्ठभूमि, सियासी समीकरण और आगे का रास्ता
पश्चिम बंगाल की 2,200 किमी से ज्यादा लंबी भारत-बांग्लादेश सीमा का बड़ा हिस्सा नदी-नाले और दलदली इलाकों से गुजरता है। बाड़बंदी के लिए जमीन राज्य सरकार ही उपलब्ध कराती है, जबकि निर्माण और फंडिंग केंद्र करता है। पिछले एक दशक में फेंसिंग में प्रगति हुई है, लेकिन नदीय हिस्से, आबादी से सटे गांव और कानूनी अड़चनें—ये सब काम को धीमा करते हैं। यहीं से केंद्र–राज्य तनाव भी शुरू होता है।
2021 में केंद्र ने BSF की अधिकार-सीमा कुछ राज्यों में 15 किमी से बढ़ाकर 50 किमी कर दी थी। तृणमूल ने इसे “संघीय ढांचे में दखल” बताया और कहा कि राज्य पुलिस की भूमिका कमजोर होती है। केंद्र का तर्क रहा कि तस्करी और अवैध पारगमन रोकने के लिए यह कदम जरूरी है। राजनीतिक बहस का केंद्र अब यही है—सुरक्षा के नाम पर केंद्र का विस्तार बनाम राज्य की स्वायत्तता।
घुसपैठ पर राजनीति बंगाल में नई नहीं है। बीएसएफ हर साल बड़ी संख्या में अवैध पारगमन और तस्करी के प्रयासों को रोकने की जानकारी देती रही है, जबकि सीमा-पार सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों के कारण वैध–अवैध आवाजाही की रेखा जमीन पर अक्सर धुंधली पड़ जाती है। बाड़बंदी का असर सीमा गांवों की आजीविका, बाजार और पारंपरिक आवाजाही पर पड़ता है, इसलिए जमीन अधिग्रहण को लेकर स्थानीय स्तर पर भी मतभेद दिखते हैं।
राजनैतिक गणित की बात करें तो 2021 विधानसभा में तृणमूल ने 213 सीटें जीती थीं, बीजेपी 77 पर रुकी थी। 2024 लोकसभा में तृणमूल ने राज्य में बढ़त बनाए रखी, बीजेपी दो अंकों में सीटें लेकर मजबूती दिखाती रही। बीजेपी का दबाव बढ़ रहा है, और शाह का यह दौरा उसी संगठित आक्रामकता का हिस्सा है—कार्यकर्ता कॉन्फिडेंस, बूथ प्रबंधन, और मतदाता ध्रुवीकरण को तेज करना।
तृणमूल की ओर से पलटवार भी तय है। पार्टी का कहना है कि घुसपैठ का नैरेटिव “भय और ध्रुवीकरण की राजनीति” है। राज्य सरकार ‘लक्ष्मी भंडार’, ‘स्वास्थ्य साथी’ और रोजगार-लिंक्ड योजनाओं को अपनी उपलब्धि बताती है और आरोप लगाती है कि केंद्र जीएसटी क्षतिपूर्ति और विभिन्न योजनाओं के बकाए रोक कर दबाव बनाता है। CAA पर तृणमूल का रुख है कि यह नागरिकता को धर्म से जोड़ता है और संविधान की भावना के विपरीत है।
शाह का “जमीन दीजिए, फेंसिंग करिए” वाला संदेश चुनाव से पहले एक ठोस एजेंडा सेट करता है। व्यावहारिक रूप से अगला कदम यही होगा—सीमा जिलों में जमीन चिन्हित करना, मुआवजा तय करना, और नदीय हिस्सों के लिए तकनीकी समाधान। केंद्र–राज्य तालमेल के बिना यह तेज नहीं चलेगा, और यही राजनीतिक टकराव का केंद्र बिंदु बन सकता है।
व्यापार और लोगों की वैध आवाजाही भी तस्वीर का हिस्सा है। पेट्रापोल-বেনাপোল जैसे लैंड पोर्ट से भारी मालवाहक ट्रकों की आवाजाही होती है, जो दोनों तरफ की अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी है। सुरक्षा सख्ती और व्यापार सुगमता—इन दोनों के बीच संतुलन बनाना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है।
2026 में बंगाल में फिर बड़ा चुनावी संग्राम होगा। बीजेपी इसे “राष्ट्रीय सुरक्षा” की लड़ाई बताकर मैदान में है, तृणमूल “राज्य के अधिकार, कल्याण योजनाओं और शांति” का नैरेटिव साध रही है। CAA का अमल, बॉर्डर फेंसिंग की रफ्तार, BSF–पुलिस समन्वय, और राजनीतिक हिंसा पर कार्रवाई—अगले महीनों में इन्हीं मुद्दों पर बंगाल की सियासत धड़कती दिखेगी।